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ब्रह्माण्ड ( Universe )

 


ब्रह्माण्ड ( Universe )

सर्व प्रथम 143 ई० में टामली ने बताया की पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और सूर्य तथा अन्य तारे पृथ्वी की परिक्रमा करते है |

          1543 ई० में कोपर निकास ने बताया की सूर्य ब्रह्माण्ड के केंद्र में है, पृथ्वी तथा अन्य तारे सूर्य की परिक्रमा करते है |

          1805 ई० में ब्रिटिश बैज्ञानिक हब्बल ने बताया की ब्रह्माण्ड आकाश गंगा में विभाजित है ब्रह्माण्ड में लगभग 100 अरब आकाश गंगा है आकाश गंगा असंख तारो का समूह होता है जिसमे करोणों अरबो तारा सामिल होते है | आकाश गंगा के केंद्र को बल्ज कहा जाता है जहाँ तारों का सकेन्द्रण सबसे ज्यादा होता है | हमारी आकाश गंगा का नाम मंदाकनी है मंदाकनी का आकर सर्पिल है मंदाकनी आकाश गंगा के किनारे में हमारा सौर परिवार स्थित है | मंदाकनी आकाश गंगा में उतर से दक्षिण की ओर एक तारो का समूह पाया जाता है जो देखने में धुंवा जैसा लगता है और इसे ही दुग्ध मेखला ( Milky Way ) कहा जाता है |

          हमारी आकाश गंगा के सबसे नजदीक का आकाश गंगा एड्रोमेडा है | सूर्य से सबसे नजदीक का तारा प्राक्सीमा सेंचुरी है जबकि सबसे चमकीला तारा सायरस / डॉगस्टार  है |

ब्रह्माण्ड की उत्पति से सम्बंधित कुछ सिधांत या परिकल्पना :-

1)     पुच्छल तारा परिकल्पना – कस्ते द बफन ( फ्रांस, 1749 ई० )

2)     वायत्य राशी परिकल्पना – कान्ट

3)     निहारिका परिकल्पना – लाप्लास

4)     ग्राहाणु परिकल्पना – चेम्बरलिन

5)     ज्वारीय परिकल्पना – जेम्स जींस एवं जेफरिज

6)     द्वैतारक परिकल्पना – रसेल

7)     बिंग बैन परिकल्पना – जार्ज लैमेंटर

ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के लिए 30 मार्च 2010 को “यूरोपीय यूनियन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च” द्वारा एक महा प्रयोग किया गया यह महा प्रयोग जेनेवा ( स्विट्जरलैंड ) शहर से कुछ दुरी पर धरातल में सुरंग बनाकर किया गया था | महाप्रयोग में स्थापित यन्त्र “लॉर्ज हैड्रन कोलाइडर” ( LHC ) था | इस महाप्रयोग में “प्रोटॉन  बिमो” को टकराकर “हिग्स बोसान” नमक कण प्राप्त करने का प्रयास किया गया था हिग्स बोसान को ईश्वरीय कण ( God Partical ) कहा जाता है और ब्रह्माण्ड के सभी पदार्ध इसी कण से बने है | जुलाई 2012 में हिग्स बोसान से मिलता जुलता कण “सब पार्टिकल” की खोज की गयी |

          तारो में उर्जा का उत्पंदन नाभिकीय सलयन द्वारा होता है इसमें दो हाइड्रोजन ( H ) मिल कर एक हीलियम ( He ) में बदलते है और इस कारण व्यापक उर्जा का उत्पादन होता है | तारो में जब हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है तो हीलियम संलायित होकर कार्बन में बदल ( C ) जाते है  और जब हीलियम भी समाप्त हो जाता है तो कार्बन संलायित हो कर भरी तत्वों जैसे फेरस ( Fe ) में बदलने लगता है इसके बाद तारा का घनत्व बढ़ने लगता है और तारा सिकुड़ने लगता है, तारा सिकुड़ कर लाल हो जाता है जिसे लाल दानव कहा जाता है इस के बाद लाल दानव में तीब्र बिस्फोट होता है जिसे सुपरनोवा कहा जाता है सुपरनोवा के बाद यदि तारा का द्रव्यमान 1.4 ms से कम होता है तो तारा अपनी नाभिकीय उर्जा कर जीवाश्म तारा में बदल जाता है जिसे स्वेत वामन भी कहा जाता है और यही स्वेत वामन बाद में गृह के रूप में बदल जाता है |

          यदि तारा का द्रव्यमान 1.4 ms से अधिक होता है तो तारा से इलेक्ट्रान बहार चले जाते है और न्युट्रॉन शेष रह जाते है जिसे न्युट्रॉनतारा / पल्सर कहा जाता है न्युट्रॉनतारा भी असीमित समय तक सिकुड़ते जाता है और सिकुड़ कर एक ही बिंदु पर केन्द्रित हो जाता है जिसे कृष्ण छिद्र / ब्लैक होल कहा जाता है ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतना तीब्र होता है की इस से किसी भी वस्तु का पलायन नही हो सकता है यहाँ तक की प्रकाश का भी पलायन नहीं हो पाता है जिस कारण से ब्लैक होल दिखाई नही देता है |

          1.4 ms को चंद्रशेखर सीमा कहा जाता है इसी के खोज के उपलक्ष में भारतीय मूल के वैज्ञानिक चंद्रशेखर को नोवेल पुरस्कार दिया गया था | ms – Mass of Sun ( सूर्य का द्रव्यमान )


 

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